hum to gaa kar mukt huye
ये वासंती बेलें
जी करता है, हिल-मिलकर यों ही आपस में खेलें
ये न लाज से छुइमुई हैं
हर बंधन से मुक्त हुई हैं
आप लिपटती हैं तरुओं से पाकर उन्हें अकेले
अंग-अंग यौवन-रस चूता
हँसतीं जब मलयानिल छूता
क्यों न दृष्य यह सहज अछूता हम स्मृतियों में ले लें!
ये वासंती बेलें
जी करता है, हिल-मिलकर यों ही आपस में खेलें
मार्च 87