hum to gaa kar mukt huye
सारी भव-व्याधियों से परे
चिर-विकल मन रे!
‘राम-कृष्ण-हरे’ बोल ‘राम-कृष्ण-हरे’
किससे वृथा डरे, वृथा डरे,
जीते-जी मरे
तेरे सिर पर है, देख, हाथ कौन धरे
अंतर में घाव लिए गहरे
यों उसाँस भरे!
मिथ्या यह मोह-पाश छिन्न क्यों न करे!
सारी भव-व्याधियों से परे
चिर-विकल मन रे!
‘राम-कृष्ण-हरे’ बोल ‘राम-कृष्ण-हरे’