bhakti ganga
किस सुर में मैं गाऊँ?
भाँति-भाँति के राग छिड़े हैं, किससे तान मिलाऊँ?
गाऊँ मिल मोरों के गुट में?
चिड़ियों की टी, वी, टुट, टुट में?
या गाते सरसिज-सम्पुट में
मधुकर-सा सो जाऊँ!
मान यहाँ हर ध्वनि का होता
किसके बस न हुए हैं श्रोता!
यदि मैं गहरे में लूँ गोता
मोती कहाँ न पाऊँ!
पर जो छवि बैठी इस मन में
नव-नव धुन रचती क्षण-क्षण में
क्यों न उसीका करूँ वरण मैं
जग से दृष्टि फिराऊँ
किस सुर में मैं गाऊँ?
भाँति-भाँति के राग छिड़े हैं, किससे तान मिलाऊँ?