bhakti ganga
कैसे यह अभिनय कर पाऊँ!
भिक्षुक के तन पर कैसे राजा के ठाठ सजाऊँ!
शब्द भिन्न हैं, क्रिया भिन्न है
सोच-सोच कर ह्रदय खिन्न है
जब पग-पग पर प्रश्न चिन्ह है
कैसे आगे आऊँ!
ज्यों-ज्यों जय-जय की ध्वनि आती
मेरी पीड़ा बढ़ती जाती
नहीं त्याग-तप की है थाती
किस बल पर इठलाऊँ!
दर्शक भी तो सभी न भोले
डर है, कोई भेद न खोले
कैसे इस पापी मन को ले
जग में कीर्ति कमाऊँ!
कैसे यह अभिनय कर पाऊँ!
भिक्षुक के तन पर कैसे राजा के ठाठ सजाऊँ!