bhakti ganga
जलो वैश्वानर ! खूब जलो
मुझे अंक में लिये प्रलय के पथ पर बढ़े चलो
इस यज्ञानल में जल जायें
सारी आशा, अभिलाषायें
प्राण लाख रोयें, चिल्लायें
हविष बिना न टलो
जन्म-जन्म से जो है जोड़ी
पापों की पूँजी कब थोड़ी!
पाई-पाई, कौड़ी-कौड़ी
पिछला ऋण भर लो
पश्चाताप-विकल यह अंतर
धन्य बने चरणों को छूकर
दोष न है तुम पर, जगदीश्वर!
कितना भी कुचलो
जलो वैश्वानर ! खूब जलो
मुझे अंक में लिये प्रलय के पथ पर बढ़े चलो