bhakti ganga
तीर तो तान- तानकर मारे
शून्य भी बेध दे कभी, प्यारे!
काल की कुंडली उलट जाये
यह घना अंधकार फट जाये
लक्ष्य कुछ और हो निकट जाये
सब जिसे ढूँढ़ ढूँढ़ कर हारे
प्रश्न है व्यर्थ ‘ कल रहूँ कि नहीं’
बस यही पूछ ‘आज हूँ कि नहीं’
पूछ उससे कि ‘है भी तू कि नहीं’?
चाँद-तारे हैं आप ही सारे?
बन न पायेगा तुझसे कह पाना
जान लेना है चुप ही रह जाना
यह उहापोह बुद्धि ने ठाना
प्यार में डूबता चला जा रे!
तीर तो तान- तानकर मारे
शून्य भी बेध दे कभी, प्यारे!