sab kuchh krishnarpanam
मिट्टी! छोड़ चरण तू मेरे
मैं विमुक्त, क्यों मुझको तेरा जड़ आलिंगन घेरे!
निशि-दिन का यह चक्र निरर्थक संध्या और सवेरे
मैं तो देश-काल से ऊपर, फिरूँ न इनके फेरे
कंचन-किंचन हारे बस कर काम-कीर्ति-शर तेरे
लक्ष्य दूर चल पड़ा बटोही उठकर बड़े अँधेरे
मिट्टी! छोड़ चरण तू मेरे
मैं विमुक्त, क्यों मुझको तेरा जड़ आलिंगन घेरे!
1948