kasturi kundal base
यह कैसी विकलता है
जो सागर-लहरों को चिर-अशांत रखती है?
मलयानिल को एक जगह टिकने नहीं देती ?
मेघ-खंडों को सतत दिग्भ्रांत रखती है ?
ये ग्रह-नक्षत्र किस खोज में
बेसुध भटक रहे हैं?
अणु-अणु में यह बेचैनी किसने भर दी है?
एक ही चेतना को इतने अनंत रूपों में ढालकर
यह रंगशाला किसने मुखरित कर दी है ?