कस्तूरी कुंडल बसे_Kasturi Kundal Base
- अनंत की गुफाओं में कुंडली मारकर बैठे
- अपने अन्दर झाँकते जाओ
- अपने अहम् में प्रविष्ट होकर मैंने देखा है
- आज, कल, परसों
- उतावले तो यहाँ सभी हैं
- ओ अधीर मन !
- ओ गँवारिन पनिहारिन!
- ओ डाल के टूटे पत्ते
- ओ दाता !
- ओ मधुपायी!
- ओ मूढ़ मन !
- ओ मेरे मन! अकेला तू ही
- ओ मेरे मन! तू क्यों भ्रांत हुआ है !
- अंत में सभी छले गये
- एक दिन तो सब कुछ आप ही छूट जाता है
- कही की ईंट कहीं का रोड़ा
- कुरुक्षेत्र का युद्ध निरंतर चल रहा है
- कोई कुछ भी करे
- खट,
- गौतम बुद्ध ने कहा था
- जब पछताते हुए मैंने कहा—
- जन्म तो तूने दिया
- जीवन के महासागर में से
- जीवन नहीं झुकता, हमीं झुक जाते हैं
- जैसे किसी वारवधू को सतत चिंता रहती है
- डाल से छूटते ही पत्ता अनाथ हो गया
- डूबते सूरज के साथ साथ
- तीर का सुख, शांति और संतोष
- तुझ तक पहुँचने के
- तूने मुझे फूल चुनने का काम सहेजा था
- तूने राजसी पोषक में सजाकर
- तेरी पूजा हमें यह अवकाश कब देती है
- तेरे दिए हुए जीवन को तो
- तेरे पास पहुँचने की आशा में
- दरवाजे पर यह खटखट कैसी है
- दर्पण में यह दरार कैसी है !
- दिन बीतते जा रहे हैं
- दुःख और अपमान की तीव्र यंत्रणाओं से
- दूसरे जब थककर सो जायेंगे
- देखते-देखते सारा मोह दूर हो गया
- नवयौवन का वह उन्माद
- नाव किनारे पर पहुँचे या नहीं
- पत्ता जब पीला पड़कर
- पहले मैं लाठी को घुमाता था
- पार जाने का उतावलापन
- पेड़ से टूटा हुआ पत्ता
- प्रश्न तो यह है
- फूलों से सजने के दिन आ गए
- बचपन दुबारा आया है
- बादल को तो आख़िर बरसकर बिखर ही जाना था
- भले ही तू एक नन्हा सा पत्ता है
- माना
- माना कि मैं सदा लीक से हटकर चलता रहा हूँ
- मुझे इसका गर्व क्यों हो
- मुझे ही यह चिंता क्यों हो
- मुड़कर नहीं देखना है
- मेरी दुर्बलताओं का अँधेरा मुझ तक ही रहे
- मेरी बाँहों में महासागर अठखेलियाँ कर रहा है
- मेरा मन अनंत चेतना से
- मेरी साँसों के स्पर्श से
- मेरे चेहरे पर किसी बच्चे कि आँखे लगा दो
- मेरे मन से कृतित्व का मोह हटा दे;
- मैं इन चाँद, सूरज और तारों से बड़ा हूँ
- मैं इनमे से किसीको नहीं पहचानता
- मैं जहाँ जाना चाहता हूँ
- मैं तो बाँसुरी में केवल फूँक मारता हूँ
- मैं तो तेरे हाथ की कठपुतली हूँ
- मैं तो केवल लेखनी उठता हूँ
- मैं पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहता
- मैं फिर उसी स्थान पर आ गया हूँ
- मैं भले ही तुझे देख नहीं पाता हूँ
- मैंने किसीको
- मैंने बालू पर अपने पद-चिन्हों से
- मैं शब्दों के माध्यम से
- मैं यह नहीं कहता
- यदि इस वंशी-वादन को रूकना ही है
- यद्यपि सूर्यास्त के पूर्व
- यदि कोई मुझसे ईर्ष्या का अनुभव करता है
- यह कैसी विकलता है
- यह धरती चल रही है
- यह सच है कि सभीने
- यह सच है
- यान निरंतर आगे की ओर भाग रहा है
- यों तो मार्ग के हर देव-विग्रह पर
- रण-भूमि में लड़ रहे सैनिक को
- रात अपने आगे से गुजरती
- लहर तीर पर पहुँचकर ख़ुशी से चिल्लायी
- विफलताओं से निराश क्यों होऊँ
- शब्दों से सबकुछ अंट जाता है
- शैतान को हमारी देह से कोई प्रयोजन नहीं
- सब कुछ गा चुकने के बाद भी
- सब कुछ आज कितना असत्य लगता है
- सागर-संतरण का यह पहला चरण है !
- सागर-संतरण को निकली नौकाओं का समूह
- सूरज की ओर मुँह करके उड़ने वाले
- संभावनाओं का अंत नहीं है
- हम डाल के सूखे पत्ते हैं
- हर सुबह मंदिर के कपाट खुल जाते है
- हम सब माया-मृग हैं
- हीरों की पोटली सर पर लादे
- हमारे जागने और सोने के बीच
- ज्ञानी कहते हैं