kasturi kundal base

नवयौवन का वह उन्माद
अब मेरी आँखों में क्यों नहीं दिखाई देता।
मेरा वह आत्म-विश्वास
आज कहाँ खो गया है!
मैं एक होकर भी तुझसे एक क्‍यों नहीं हो पाता!
मेरा अस्तित्व ही मेरे लिए नाग-पाश हो गया है!
मैं अपनी विकलता किससे कहूँ!
तेरे बिना मुझे कुछ सुहाता ही नहीं है,
यों होने को तो यहाँ सभी अपने है, किंतु
मेरे ‘मैं’ से किसीका कोई नाता ही नहीं है।