kasturi kundal base

जैसे किसी वारवधू को सतत यह चिंता सताती रहती है
कि रसिकों के बीच उसे रूपहीन होकर न रहना पड़े,
जैसे किसी धन-कुबेर को सदा यह भय लगा करता है
कि उसे कभी निर्धनता का उपहास न सहना पड़े,
जैसे किसी राज्याधिकारी को
सत्ताच्युत होने की दुश्चिंता चिर-अशांत रखती है,
जैसे किसी वैजयंतीधारी को
विजित हो जाने की कल्पना चिर-अश्रांत रखती है,
वैसे ही मेरा मन हर घड़ी
तुझसे बिछुड़ जाने की आशंका से डरता रहता है,
उसके पूर्व मेरे प्राण ही मुझसे बिछुड़ जायँ,
बस यही कामना करता रहता है।