kasturi kundal base
हम डाल के सूखे पत्ते हैं,
वसंत आये भी तो
हमारे लिए अब उसका कोई अर्थ नहीं है,
हमें फिर पहले की तरह हरा-भरा कर सके,
वासंती समीर का कोई झोंका
इतना समर्थ नहीं है।
इसी तरह हिलते-डुलते
किसी भी क्षण,
हम टूटकर धरती पर बिखर जायेंगे !
हमारा आना, कुछ देर तक हवा में लहराना
और फिर चला जाना
क्या सचमुच व्यर्थ नहीं है!