kasturi kundal base
हर सुबह मंदिर के कपाट खुल जाते हैं
और पक्षियों के जयगान के बीच
स्वर्णिम किरीटधारी देवता
फेनोज्ज्वल सागर-शय्या से उठकर आते हैं ।
विस्मय-अभिभूत मैं,
हर सुबह जैसे किसी नये लोक में जागता हूँ,
अँधेरे के दुःस्वप्नों से भरी शंकाओं के लिए,
उनसे सिर झुकाकर क्षमा माँगता हूँ!
परंतु अपनी चिर-यत्नों से गूँथी पुरानी माला
जब मैं उन्हें पहनाने को बढ़ता हूँ
तो मेरे हाथ उठ नहीं पाते हैं,
मेरा हृदय मुझे धिक्कारने लगता है–
‘मूढ़ ! बासी फूल भी कहीं देवता पर चढ़ाये जाते हैं |’