kasturi kundal base

जन्म तो तूने दिया,
अच्छा ही किया
पर आगे से ऐसा मत करना
कि रत्नों की पिटारी को
साग-भाजी बेचनेवालों के बीच ला धरना।
किसीने गाजर-मूली के ढेर में
मुझे रख दिया था,
किसीने नाक से सूँघा था,
किसीने जीभ से चख लिया थां।
चारों ओर गँधाती मछलियों के बीच
मेरी बोली लगती रही,
और मेरी अस्मिता
सीलनभरी लकड़ियों-सी बेबस सुलगती रही।
कौन-सी ऐसी यंत्रणा थी
जो मैंने यहाँ नहीं भोगी !
ओ, मेरे सिरजनहार !
क्या तुझे इसकी खबर भी हुई होगी |