kasturi kundal base

पेड़ से टूटा हुआ पत्ता
चारों ओर भटकता फिरता है,
कभी उड़कर आकाश की ओर जाता है,
कभी धरती की ओर गिरता है।
रह-रहकर उसे याद आती हैं
बचपन को बातें सभी पुरानी
चिड़ियों की चूँ-चूँ, चीं-चीं,
गिलहरियों की छेड़खानी
उड़ने को मचल-मचल उठना
हवा के झोंके से
दम भर भी रुकना नहीं
किसी के रोके से
शाखा भी उसे पकड़ने को
बार-बार बाँहें फैलाती है,
माँ की गोद में आने को
अब उसकी आत्मा कितनी छटपटाती है।
पर जो समय बीत चुका
वह क्या कभी लौट पायेगा!
डाल से टूटा हुआ पत्ता
क्या कभी फिर उस डाल पर आयेगा।