kasturi kundal base

बादल को तो आखिर बरसकर बिखर ही जाना था,
प्रश्न तो यह है–
उसने किसी वनस्थली को
अवंध्या बनाया कि नहीं,
बिजली को तो चमककर अंत में लुप्त ही हो जाना था,
देखना यही है–
उसने किसी भूले हुए को मार्ग दिखाया कि नहीं,
ज्वार को तो कभी-न-कभी सागर में लौटना ही था,
विचार इसीका करना है–
क्या उसने तीर पर कोई मोती भी छोड़ा है,
मेरी पद-रेखा को भी तो
एक दिन समाप्त ही होना है,
बस यही जानने का यत्न करना–
क्या उसने भूत और भविष्य के बीच
कोई सेतु भी जोड़ा है।