kasturi kundal base
मुझे इसका गर्व क्यों हो
कि मैंने अपने हाथों से
तेरा श्रृंगार किया है !
क्या यह कम है
कि तूने अपने अलंकरण का
यह दुर्लभ अवसर मुझे दिया है!
क्या मेरे अटपटे गीतों को ही
तूने भावमग्न हो-होकर नहीं सुना है !
मेरे द्वारा लाये गये निर्गध फूलों को ही
सदा अपनी रूप-सज्जा के लिए नहीं चुना है !
तेरा सेवक कहलाने के इस गौरव के आगे
किसी भी अन्य श्री-विभूषण की क्या गणना है।
जिससे पुरस्कार भी पुरस्कृत हो जाय,
मुझे तो अब वही बनना है।