kasturi kundal base

माना कि मैं सदा लीक से हटकर चलता रहा हूँ,
परंतु क्या यह सच नहीं हैं
कि मैं सदा तेरे संकेत पर ही
अपनी चाल बदलता रहा हूँ।
यह भी माना,
मेरे पाँव लहूलुहान हैं
और मेरे अंग-प्रत्यंग
कँटीली झाड़ियों से नुच गये हैं।
संभवत: मैं कभी वहाँ नहीं पहुँच पाऊँगा
जहाँ मेरे अन्य साथी पहुँच गये हैं।
पर मुझे संतोष है
कि मैंने किसीका अंधानुगमन नहीं किया है,
टूटी-फूटी भाषा में ही सही,
सदा अपने मन की बात कही है,
चर्वित-चर्वण नहीं किया है।