diya jag ko tujhse jo paya
कैसे प्राण बचायें!
लोग खड़े हैं घात लगाये पथ के दायें-बाँयें!
भले दिनों में सभी भले हैं
बाहर से उजले-उजले हैं
पर मन में जो भाव पले हैं
भय हो, यदि दिख जायें
यदि इन छद्म मुखौटोंवाले
भद्रजनों से तू न बचा ले
तेरे सेवक भोले-भाले
क्या जग में जी पायें!
मैं अजान, मस्ती में गाता
उनकी चालों से बच पाता
यदि न आड़ करतीं, जगत्राता!
तेरी छिपी भुजायें!
कैसे प्राण बचायें!
लोग खड़े हैं घात लगाये पथ के दायें-बाँयें!