diya jag ko tujhse jo paya
जब तक गुँथ पायेगा हार
बंद न क्या हो जायेगा तब तक मंदिर का द्वार!
फैल रही संध्या की लाली
देख, रात है घिरनेवाली
तू रखकर पूजा की थाली
लड़ियाँ रहा सँवार
साधक सधे हुए जो आते
हार बिना मंदिर में जाते
प्रभु को सिर की भेंट चढ़ाते
पाते अक्षय प्यार
छोड़ शास्त्र-विधि का आडम्बर
प्रेम-सूत्र में हृदय पिरोकर
तू भी रख प्रभु के चरणों पर
अपना अहम् उतार
जब तक गुँथ पायेगा हार
बंद न क्या हो जायेगा तब तक मंदिर का द्वार!