mere geet tumhara swar ho
तम्बूरा कभी चोट भी खाता
किन्तु मिला उसके सुर में सुर, क्या तू आप न गाता!
जो तेरे सुर में रह पाये
क्या है, यदि कुछ कष्ट उठाये!
तुझसे गले-गले मिल जाये
यह सुख कम न, विधाता!
इससे नित नव राग निकाले
धन्य चोट भी, देनेवाले!
तूने ही सुर-ताल सँभाले
जब देखा अकुलाता
यदि पीड़ा का सुर भी फूटे
जग तो उससे सुख ही लूटे
जब तक ध्वनि का तार न टूटे
रह बस इसे बजाता
तम्बूरा कभी चोट भी खाता
किन्तु मिला उसके सुर में सुर, क्या तू आप न गाता!