मेरे गीत, तुम्हारा स्वर हो_Mere Geet, Tumhara Swar Ho
- अब तो थका-थका मन मेरा
- एक अवलंब तुम्हीं, प्रभु! मेरे
- ओ मेरे चिरसंगी!
- कभी जी में तेरे यह आया
- कितने गीत सुनाऊँ!
- कृपा का कोष नहीं था रीता
- कैसे तेरे दर्शन पाऊँ!
- कोई माने या मत माने
- क्यों तू दुःख से वृथा डरे
- क्यों यह रोना-धोना मेरे मन!
- चलता रहूँ, चलता रहूँ
- चेतन मेरे ‘मैं’ से हारा
- छोड़कर कर मैंने सबका साथ
- छोड़ो भी चिंता इति-अथ की
- तँबूरा कभी चोट भी खाता
- तुझसे, नाथ और क्या माँगूँ!
- दृष्टि के आगे से मत हटना
- दोष जो संतों ने बतलाये
- ध्यान में बुला-बुलाकर हारा
- न क्यों तू अब पहले-सा बरसे!
- नाथ! जब अक्षय कोष तुम्हारा
- नियम क्यों नहीं बदल सकता है!
- बढ़ रहा है सागर मुँह फाड़े
- भक्ति की महिमा डूबे सारी
- भाव वे तुमको भी छू पाए
- मन को वहीं लगाना होगा
- मिथ्याचारी मन, प्रभु ! मेरा
- मुझे तो यह काया है प्यारी
- मुझे तो है, प्रभु! यह विश्वास
- मुझे तो है यह दृढ़ विश्वास
- मुझे भर लेती बाँहों में
- मेरे जन्म-जन्म के साथी!
- यदि इन गीतों को गाओगे
- रहे तो दूर-दूर इस बार
- रूप बड़ा या भाव बड़ा है
- व्यर्थ करुणानिधि नाम धराया
- साँस जब तक चल रही, सही है
- क्षमा का ही केवल आधार
- क्षमा भी किस मुँह से मैं माँगूँ! !
- अकेलापन – जाऊँ कहाँ , खुलूँ भी किससे
- अमरत्व – कैसे मिले जीवन को
- आत्मिका – मानव ह्रदय ने प्रेम-राग जो
- ईश्वर से – नियम बनाके बंध गया
- काया – काया को वृथा ही
- काल – देह को कर दे
- छंदमुक्त कविता – व्योमवासी खग पिंजड़े में
- दिवंगत मित्र – है करवट बदलकर
- दुराशा – अंजलि से जैसे
- नास्तिकों से – देश और काल, ये है या नहीं है
- मृत्यु – करके सर्वस्व भी
- मोहभंग – अब तो इस बाग़ में सन्नाटा है
- वार्धक्य – देख नित्य बढ़ता
- विराग – यह भी क्या विराग
- सुनामी से – रात दिन मर-मर कर