mere geet tumhara swar ho

कितने गीत सुनाऊँ!
जी करता है अब अगीत बन कर ही तुझ तक आऊँ

जोड़-तोड़ कुछ शब्द झूठ-सच
गीत हार कितना भी दूँ रच
ओ अव्यक्त,अनाम,अनिर्वच!

क्या तुझको गा पाऊँ!

नयन आवरण ज्यों दर्शन में
देह आवरण आलिंगन में
गीतों से तो और मिलन में

नव व्यवधान बनाऊँ

पाना है निज अंतरतम में
तुझे शब्द के पार अगम में
तोड़ लेखनी, डूब स्वयं में

मौन न क्यों हो जाऊँ!

कितने गीत सुनाऊँ!
जी करता है अब अगीत बन कर ही तुझ तक आऊँ