mere geet tumhara swar ho

मुझे तो यह काया है प्यारी
जिस काया में पायी है, प्रभु! प्रीति, प्रतीति तुम्हारी

कवियों ने जिसका गुण गाया
क्या दे, भावी यश की काया!
जब सुरपुर तक पहुँच न पाया

भू का स्वर सुखकारी!

जो सत्कर्मों की निधि जोड़ी
दे आगे शुभगति भी थोड़ी
पर जो यश की पूँजी छोड़ी

व्यर्थ न हो वह सारी!

क्यों मैं भावी का भ्रम पालूँ
प्राप्त कीर्ति ही क्यों न सँभालूँ
थाली में की खीर न खा लूँ

जोहूँ अगली पारी!

मुझे तो यह काया है प्यारी
जिस काया में पायी है, प्रभु! प्रीति, प्रतीति तुम्हारी