mere geet tumhara swar ho
कृपा का कोष नहीं था रीता
मेरा शंकाकुल मन ही था जो मुझको ले बीता
आधे मन से ही पूजा की
तर्क-बुद्धि से विभुता आँकी
कैसे दिख पाती वह झाँकी
जो दिखलाती गीता!
सुख-दुख, लाभ-हानि, यश-अपयश
सोच कि इनपर क्या मेरा वश
यदि सब कुछ सह लेता हँस-हँस
क्यों चिंता-विष पीता!
रहा भटकता भी जीवन में
पर प्रभु-सुधि कर अंतिम क्षण में
रहे न यदि भय-चिंता मन में
समझूँगा रण-जीता
कृपा का कोष नहीं था रीता
मेरा शंकाकुल मन ही था जो मुझको ले बीता