mere geet tumhara swar ho

नियम क्यों नहीं बदल सकता है!
क्यों मानूँ कि भाग्य पर तेरा जोर न चल सकता है!

प्रभु! जब तू है जग का कर्ता
सर्व-समर्थ सकल दुखहर्ता
तो क्यों विवश रहे ईश्वरता

नियम न टल सकता है!

मन मेरा पापी था माना
पर जब प्रेम-भक्ति-व्रत ठाना
कैसे अब भी कर्म पुराना

मुझको छल सकता है!

ओ नियमों से परे नियामक!
छिपा शून्य में भी तू अब तक
सुन यह आर्त पुकार, अचानक

क्या न निकल सकता है!

नियम क्यों नहीं बदल सकता है!
क्यों मानूँ कि भाग्य पर तेरा जोर न चल सकता है!