mere geet tumhara swar ho

छोड़कर मैंने सबका साथ
गीतों का यह सुर छेड़ा है, तुम्हें रिझाने, नाथ!

जीवन में जो भी था सुन्दर
उसे शब्द-सुमनों में सजकर
अर्पित करने श्री-चरणों पर

यह माला दी गाँथ

लोक-प्रशंसा का हठ छोड़ा
वाद-विवादों से मुँह मोड़ा
मैंने एक यही धन जोड़ा

स्याही से रँग हाथ

क्या ये गीत भक्त जब गाते
तुम्हें न मेरी सुध करवाते!
प्रभु! निज चारण के ही नाते

कर दो मुझे सनाथ

छोड़कर मैंने सबका साथ
गीतों का यह सुर छेड़ा है, तुम्हें रिझाने, नाथ!