mere geet tumhara swar ho
चेतन मेरे ‘मैं’ से हारा
लाख प्रयत्न किये पर टूटी नहीं अहम् की कारा
जब तक इसका मोह न टूटे
क्या चिंता से पीछा छूटे!
कैसे भला मुक्ति-सुख लूटे
प्रभु! यह अंश तुम्हारा!
नहीं कृपा तुमने तो कम की
दी इसको अनुभूति स्वयं की
ममता ने इसके ही भ्रम की
व्यर्थ किया श्रम सारा
भय मुझको पर, चित् छोड़े जब
कहाँ जायँगे मनोराग सब!
लय न कर लिया जाऊँगा तब
मैं जड़ तत्वों द्वारा !
चेतन मेरे ‘मैं’ से हारा
लाख प्रयत्न किये पर टूटी नहीं अहम् की कारा