mere geet tumhara swar ho

न क्यों तू अब पहले सा बरसे
फिर फिर नाथ तृषित मन मेरा इन बूँदों को तरसे

बरस कि भींजे तन मन सारा
उमड़ चले फिर श्रावण धारा
ढहा बहा जड़ता की कारा

फूटें स्वर निर्झर से

तूने ही था मुझे जगाया
दिन भर प्रेम पाठ पढ़वाया
क्यों अब संध्या-पल विलगाया

स्नेह स्पर्श सिर से

मैंने जो भी सुमन सजाये
क्या न तुझी से वे थे आये
बिना कृपा जल जग क्या पाये

अब सूखे तरुवर से

न क्यों तू अब पहले सा बरसे
फिर फिर नाथ तृषित मन मेरा इन बूँदों को तरसे