mere geet tumhara swar ho

रहे तो दूर-दूर इस बार
पर क्या आगे भी न करोगे, प्रभु! मुझको स्वीकार!

शब्दों से ही रहे लुभाये
बन अनुभूति न चित् में छाये
अबकी तो न सामने आये

खोल शून्य का द्वार

पर जब नया जन्म फिर लूँगा
बिना मिले तुमसे न रहूँगा
यों न मोह-भ्रम में भटकूँगा

लिये अहम् का भार

आज तुम्हारा सेवक भी बन
वंचित हूँ पाने से दर्शन
पर क्या अगली बार न, भगवन् !

दोगे यह अधिकार !

रहे तो दूर-दूर इस बार
पर क्या आगे भी न करोगे, प्रभु! मुझको स्वीकार!