mere geet tumhara swar ho
रूप बड़ा या भाव बड़ा है?
एक बाँसुरी लिए खड़ा है, एक राग बनकर उमड़ा है
जब मैंने पूछा कविवर से, हँस बोले वे, ‘प्रश्न कड़ा है’
रूप अंध है बिना भाव के, भाव रूप खोकर लँगड़ा है
रूप देखते ही लगता ज्यों मेरु शिखर से स्वर्ण झड़ा है
और भाव के जगते ही वह अश्रुघटा बन बरस पड़ा है
हंस भारती के दोनों ही, दोनों ने सत्काव्य गढ़ा है
रूप सुमन यदि भाव सुरभि है, व्यर्थ श्रेष्ठता का झगड़ा है
रूप बड़ा या भाव बड़ा है?
एक बाँसुरी लिए खड़ा है, एक राग बनकर उमड़ा है