mere geet tumhara swar ho

छोड़ो भी चिंता इति-अथ की

आओ कुछ बात करें पथ की

लिखना वर्तमान का ही लेखा है
किसने अनागत को यहाँ देखा है!
माना, लाँघनी कल अग्निरेखा है

गति क्यों चरणों की आज श्लथ की!

जिसने हमें शून्य से निकाला है
लाकर यहाँ नर तन में डाला है
छोड़ेगा न जिसने नित सँभाला है

छूटे भी वल्गा जब रथ की

छोड़ो भी चिंता इति-अथ की

आओ कुछ बात करें पथ की