mere geet tumhara swar ho

ईश्वर से

नियम बनाके बँध गया क्‍या उनसे तू आप
उन पर क्या तेरा अब जोर नहीं चलता है ?
छीन लेती प्रकृति हजारों प्राण एक साथ
यह अनाचार बता, क्‍या न तुझे खलता है ?
यदि तू स्वतंत्र नहीं, तो हम हैं स्वतंत्र कैसे !
तेरी ज्योति से ही तो प्रदीप यह जलता है
लगता मुझे तो कालरूप बना तू ही कभी
करुणा, दया का निज विधान ही बदलता है