mere geet tumhara swar ho

कैसे तेरे दर्शन पाऊँ!
मिट्टीसने पाँव ले कैसे, प्रभु! मंदिर में आऊँ!

ज्ञानी, भक्त, सिद्ध, वैरागी
हुए चरण-रज पा बड़भागी
मैंने तो जड़ वृत्ति न त्यागी

क्या मुँह तुझे दिखाऊँ!

अर्थ-काम की मृगतृष्णा में
वृथा भटकता रहा सदा मैं
अब इस जीवन की संध्या में

विरति कहाँ से लाऊँ!

पर शिशु तो लोटेगा भू पर
जब तक माँ न गोद में ले भर
आऊँ तभी, कृपा जब पाकर

मोह-मुक्त हो जाऊँ

कैसे तेरे दर्शन पाऊँ!
मिट्टीसने पाँव ले कैसे, प्रभु! मंदिर में आऊँ!