mere geet tumhara swar ho

मन को वहीं लगाना होगा
जहाँ पहुँचकर फिर न विरह-दुख इसे उठाना होगा

नाता क्यों न उसीसे जोड़ूँ
सब छूटें पर जिसे न छोड़ूँ!
क्यों न उधर ही रथ को मोड़ूँ

जिस पथ जाना होगा

पर मन का रथ तो द्रुतगामी
जिसकी रास न जाये थामी
ठहर जाय बन जहाँ अकामी

वह थल पाना होगा

साथ भले ही छूटे तन का
पर यदि प्रभु से मिलन न मन का
महासिंधु में इस जलकण का

कहाँ ठिकाना होगा!

मन को वहीं लगाना होगा
जहाँ पहुँचकर फिर न विरह-दुख इसे उठाना होगा