mere geet tumhara swar ho
तुझसे नाथ! और क्या माँगूँ!
कितना भी भटकूँ, तुझमें निज आस्था कभी न त्यागूँ
यह जग छलनामय है, माना
किन्तु भक्तिपथ धरे सुहाना
इसमें ही तुझको है पाना
क्यों इस जग से भागूँ!
जैसे तू है यहाँ सँभाले
जो संकट आये, सब टाले
रहना सँग-सँग यही कृपा ले
जब फिर सोकर जागूँ
तुझसे नाथ! और क्या माँगूँ!
कितना भी भटकूँ, तुझमें निज आस्था कभी न त्यागूँ