mere geet tumhara swar ho

कोई माने या मत माने
मुझको तो न भुलाया पल भर भी उस जगतपिता ने

सतत काव्य-रस-सुधा पिलायी
मनमोहिनी प्रिया मिलायी
संतों की पगधूलि दिलायी

मुक्ति भुक्ति में पाने

कितनी भी निस्पृह, निर्गुण थी
पर जब जगी प्रेम की धुन थी
दिखी दृष्टि उसकी सकरुण थी

निज स्नेहांचल ताने

मैं उसके ही गुण गा-गाकर
धन्य हुआ जीवन-फल पाकर
क्या, यदि जग से मिले न आदर

वह तो अपना जाने

कोई माने या मत माने
मुझको तो न भुलाया पल भर भी उस जगतपिता ने