mere geet tumhara swar ho

भक्ति की महिमा डूबे सारी
यदि असंग रह, प्रभु! तुमने मेरी बिगड़ी न सुधारी

ज्यों जगमग तारे अम्बर में
झलक तुम्हारी दें अंतर में
दिखो न त्यों यदि मेरे स्वर में

व्यर्थ करूँ श्रम भारी

मुझे यहाँ तक लाकर भी तुम
रहो भावना में ही यदि गुम
कैसे लेकर अक्षत-कुंकुम

पूजा करूँ तुम्हारी!

सच है लोभ, मोह के मारे
जग में नित नव रूप सँवारे
मैंने, किन्तु, दाँव भी हारे

बाजी कभी न हारी

भक्ति की महिमा डूबे सारी
यदि असंग रह, प्रभु! तुमने मेरी बिगड़ी न सुधारी