mere geet tumhara swar ho

अब तो थका-थका मन मेरा
बुझी जा रही आशा की लौ, घिरता देख अँधेरा

आगे का तो पथ अनदेखा
ठहर गयी है ज्यों पदरेखा
क्या संकेत न यह रुकने का

मुझे मिल रहा तेरा

जी तो करता है, सुस्ता लूँ
कुछ यात्रा की थकन मिटा लूँ
तुझसे नयी शक्ति फिर पा लूँ

यहीं डाल कर डेरा

पर क्या हो यदि जगूँ न सोकर
या यह जग न मिले जगने पर
शत-शत शंका, आशंका भर

चित् चिंता ने घेरा

अब तो थका-थका मन मेरा
बुझी जा रही आशा की लौ, घिरता देख अँधेरा