mere geet tumhara swar ho
क्षमा भी किस मुँह से मैं माँगूँ!
करूँ वैद्य से स्वास्थ्य-याचना, आप कुपथ्य न त्यागूँ!
पल न विराग-वृत्ति अपनाऊँ
मन की धुन पर नाचूँ-गाऊँ
देख कालगति भय तो खाऊँ
पर न नींद से जागूँ!
तुमने तो पल सुध न बिसारी
पर क्या कटे पाप-ऋण भारी!
पाकर भी, प्रभु! कृपा तुम्हारी
जग के पीछे भागूँ
क्षमा भी किस मुँह से मैं माँगूँ!
करूँ वैद्य से स्वास्थ्य-याचना, आप कुपथ्य न त्यागूँ!