jyon ki tyon dhar deeni chadariya
भूल करके भी हूँ बड़भागी
जब-जब भूल हुई कुछ मुझसे, भक्ति-भावना जागी
यदि अपने दुख-संकट से मैं विकल नहीं हो जाता
तो क्या करता स्मरण तुम्हारा, नित उठ मंदिर आता!
मेरे आर्त रुदन से ही तो तुमने निद्रा त्यागी
इसी भरोसे पर आशा की क्षीण डोर हूँ थामे
सर्व-समर्थ, नाथ! कैसे होगे असमर्थ क्षमा में
शरणागत हो मैंने तो नित भीख उसीकी माँगी
यद्यपि वह दृढ़ भक्ति नहीं जो तुमसे मिलन करा दे
बेसुध मैं फिर रहा शीश पर प्रतिभा का भ्रम लादे
पर मन की अतृप्त आशा ने ही तो किया विरागी
भूल करके भी हूँ बड़भागी
जब-जब भूल हुई कुछ मुझसे, भक्ति-भावना जागी