guliver ki chauthi yatra
रहें गीत अनगाये
मेरी भी जिद है, न लिखूँगा, जब तक तू न लिखाये
हो कृतघ्न कितना भी यह जग, नाथ!
तू तो सदा रहा है मेरे साथ
यदि तू ही बन निठुर, छुड़ा ले हाथ
तो चुप रहूँ, बला से मेरी, जग तृषार्त रह जाये
माना तुझ पर अखिल सृष्टि का भार
क्या मेरी गिनती कि करे तू प्यार!
पर मेरा भी कुछ तो है अधिकार
देखूँ, कब तक पुत्र-रुदन सुन पिता न उसे मनाये
यश की लिप्सा अब क्या दाहे प्राण!
छोटे-बड़े मुझे अब एक समान
बस तू ही जब तक खींचे यह यान
तब तक हूँ गतिशील, अन्यथा चलूँ न लाख चलाये
रहें गीत अनगाये
मेरी भी जिद है, न लिखूँगा, जब तक तू न लिखाये
Aug 2010