har moti me sagar lahre
अमृतभरा चाँद, चमकता था जो गगन में
और भी सुहाना हुआ, मेरे काव्यवन में
और ही थी शोभा उसकी, अक्षरों के घूँघट में
उतरी नयी दुल्हन-सी जब चाँदनी भुवन में
अमृतभरा चाँद, चमकता था जो गगन में
और भी सुहाना हुआ, मेरे काव्यवन में
और ही थी शोभा उसकी, अक्षरों के घूँघट में
उतरी नयी दुल्हन-सी जब चाँदनी भुवन में