har moti me sagar lahre
काल का सिरहाना, ओढ़े चादर इतिहास की
सो रहा हूँ मैं भू पर वाल्मीकि-व्यास की
कभी तो घिरे महान कवियों से सुधीजन को
आयेगी सुध इस भारती के मूक दास की
काल का सिरहाना, ओढ़े चादर इतिहास की
सो रहा हूँ मैं भू पर वाल्मीकि-व्यास की
कभी तो घिरे महान कवियों से सुधीजन को
आयेगी सुध इस भारती के मूक दास की