har moti me sagar lahre
किधर से आये अबकी धारा?
अंबर से, गिरि से, वन से या तोड़ अतल की कारा ?
खुले दसों दिशि द्वार, भरा है छिद्रों से नभ सारा
अबकी किस तट पर कैसे, प्रभु ! पाऊँ प्रेम तुम्हारा?
क्या मेरा विश्वास अटल जो कभी न तम से हारा
अबकी बार मुझे दे पथ में कोई नया सहारा?
किधर से आये अबकी धारा?