har moti me sagar lahre
जाओ, हम रक्खेंगे याद
जीवन की यह दुखमय वेला, यह इतिहीन विषाद
हमने देखीं कुसुमावलियाँ
प्रतिपल खिलनेवाली कलियाँ
अब पतझड़ को भी देखेंगे नव वसंत के बाद
हे ऋषि ! हे प्राचार्य ! हमारे
पूरो शिक्षण-कार्य हमारे
जीवन-यात्रा सफल करें हम, दो यह आशीर्वाद
जाओ, हम रक्खेंगे याद
( महामना पं० मदनमोहन मालवीयजी के काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय के कुलपति का पद छोड़ते समय सन्
१९३९ में लिखी गयी मेरी कविता का प्रारंभिक भाग जो
स्मृति में रह गया है, उनके जन्म की १५०वीं जयन्ती
पर सभक्ति समर्पित. )