har moti me sagar lahre
मैंने द्वार-निकट जब गाये
पूछा चकित शारदा ने, ‘ये गीत कहाँ से लाये ?’
मैं बोला, ‘मैंने ही, देवी !
रचा इन्हें रह नित पदसेवी’
बोली वह, ‘थे यदि रचते ही
पद, क्यों रहे छिपाये ?
‘कभी पार्षदों के भी द्वारा
सुना नहीं क्यों नाम तुम्हारा ?’
मैंने कहा कि यह स्वर-धारा
वे भी देख न पाये
था अवकाश न, नाचूँ, गाऊँ
उन्हेँ मनाकर, नाम कमाऊँ
धुन थी यही, यहाँ जब आऊँ
रहूँ न आँख चुराये
मैंने द्वार निकट जब गाये
पूछा चकित शारदा ने, ‘ये गीत कहाँ से लाये ?’