boonde jo moti ban gayee
तुम कहीं भी जाकर छिप जाओ,
मैं तुम्हें दूँढ़ ही निकालूँगा;
कितने भी रूप बदल डालो
तुम्हें पाकर ही रहूँगा।
देश और काल की सीमाओं में बंदी,
तुम्हारी तटस्थता मुझे छल नहीं सकेगी,
हृदय से हृदय की यह पहचान बदल नहीं सकेगी।
पाताल में धँसकर
शेष नाग के आवतों में से
मैं तुम्हें खींच लूँगा।
आकाश में उड़कर
शत-शत वज्राघात झेलता हुआ
तुम्हें अपनी बाँहों में भींच लूँगा।
विद्युत के धन और ऋण का आकर्षण
कहाँ से आता है ?
नदी को सागर की ओर दौड़ना
कौन सिखाता है!
हर स्थिति में,
तुम्हारा प्रेम मुझे पुकार लेगा,
मिलने की कोई-न-कोई युक्ति निकाल देगा।