boonde jo moti ban gayee
प्रतिबिंब तो झील की नील लहरों में
प्रतिपल टूट-टूटकर बिखरता जा रहा है
परंतु चाँद निष्कंप दीपशिखा के समान
आकाश की निरभ्रता में सतत मुस्कुरा रहा है,
जैसे तुम्हारा निर्मल रूप
नित्य मेरी बाँहों में बँध-बँधकर भी
चिर-अपार्थिव, चिर-अलभ्य,
चिर अमलिन, चिर-अछूता रहा है