boonde jo moti ban gayee
मेरे चारों ओर रंगीन तितलियाँ उड़ती हैं
पर मैं उन्हें हाथ नहीं लगाता हूँ।
कितना अच्छा लगता है
सुगंध के बादलों से घिरे रहना!
न कुछ सुनना, न कुछ कहना!
मैं तो इस रूप की धारा में
बस हिचकोले खाता हूँ,
कभी डूबता हूँ, कभी उतराता हूँ।
कविता हर फूल में अँगड़ाइयाँ लेती है,
परंतु यह आवश्यक नहीं
कि हर फूल को तोड़ लिया जाय;
हर चितवन की ओट में
प्रेम का महासागर लहराता है,
पर यह कौन कहेगा
कि हर चितवन से नाता जोड़ लिया जाय!
मैं तो उस रूप की आराधना करता हूँ
जो तुम्हारी आँखों में तिरता-तिरता
मेरे प्राणों के तीर पर ठहर गया है,
मेरी समस्त चेतना को सुगंधित कर गया है।
जैसे एक तार के छेड़ते ही
हम अखिल सृष्टि के नाद-तंतुओं से एकाकार हो जाते हैं,
जैसे एक लहर के साथ-साथ
सातों सागर हमारी बाँहों में उमड़ आते हैं,
वैसे ही तुम्हारी एक चितवन में बँधा,
सृष्टि का सारा सौंदर्य
मेरा अपना हो गया है,
वह जो एकाकी और उपेक्षित होने का भाव था,
रुग्ण मन का सपना हो गया है।